मानसिक स्वास्थ्य: युवाओं के जीवन का अनदेखा संकट
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Mental health: The unseen crisis plaguing the lives of Indian youth by Writer Ravi Kumar Manjhi |
भारत जनसंख्या के मामले में प्रथम स्थान पर पहुंच गया है। वर्तमान में भारत सबसे युवा देश है और यहाँ के जनसंख्या का लगभग 65 फीसदी हिस्सा 35 वर्ष की आयु से नीचे है। युवावस्था को आमतौर पर जीवन का स्वस्थ समय माना जाता है लेकिन भारत में युवाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) का विषय एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है। आधुनिक जीवनशैली, प्रतिस्पर्धा और सामाजिक दबाव ने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। मेंटल हेल्थ व अवसाद का सीधा अर्थ है हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की स्थिति। यह हमारी सोचने, समझने और महसूस करने की क्षमता को प्रभावित करता है। शायद आप जानकर हैरान हो जायेंगे कि दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या के आंकड़े भारत में दर्ज किए गए हैं जिनमें से 41% प्रभावित लोगों की उम्र 30 वर्ष से कम है जिसका प्रमुख कारण ही मानसिक तनाव, एंग्जायटी और अवसाद है। WHO की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 5 करोड़ से भी ज्यादा लोग डिप्रेशन यानी अवसाद के शिकार हैं तो वहीं 3 करोड़ से ज़्यादा लोग एंग्जायटी से पीड़ित हैं। युवाओं को भी सोचना होगा कि जीवन यूँ ही ना गंवाएं, बल्कि जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करें।
बीते दिन कि बात है, मेरे मित्र अमर ने अपनी एक महिला मित्र के बारे में बताते हुए कहा कि वह लगभग 25 वर्ष की है और मानसिक पीड़ा से जूझ रही थी। उसका मानना था कि उसने जीवन के सभी उतार-चढ़ाव देख लिए हैं और अब उसके पास जीने का कोई कारण नहीं बचा। वह हर रात इस सोच के साथ सोती थी कि शायद यह उसकी आखिरी रात हो! वो इतनी हताश को चुकी थी कि जीने कि उम्मीद बहुत पीछे छोड़कर मृत्यु का इंतजार कर रही थी| यह घटना इस बात को दर्शाती है कि आज के युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य कितना अहम और संवेदनशील मुद्दा है। यदि आप या आपका कोई जानने वाला मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहा है, तो विशेषज्ञ से संपर्क करें। याद रखें, मदद मांगना कमजोरी नहीं, बल्कि हिम्मत का प्रतीक है।
युवाओं में मानसिक समस्याओं के प्रमुख कारण:
1. माता-पिता के सपने और बेरोजगारी – अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता अपने बच्चों से ढेरों उम्मीदें रखने लगते हैं जिसके कारण बच्चे मनोवैज्ञानिक दबाव में रहते हैं। देश में बैचलर्स और मास्टर्स डिग्री धारकों की काफी बड़ी तादाद है जो एक अच्छी नौकरी की तलाश में है। परंतु सरकारी व निजी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या में लगातार कमी आने के कारण यह पीढ़ी तनाव और अवसाद की गिरफ्त में आसानी से आ रही है।
2. सामाजिक दबाव - सही मायनों में देखा जाये तो युवाओं में मानसिक समस्याओं का सबसे बड़ा कारण यही है कि जब रोग को रोग न मानकर उस व्यक्ति को ही दिमागी तौर पर कमजोर बता दिया जाये। ऐसे में युवा अपनी समस्या के बारे में किसी को बता भी नहीं पाता है। वह डरता है कि लोग क्या कहेंगे? लड़कियों में यह समस्या लड़कों के मुकाबले अधिक गंभीर हो जाती है।
3. जातिगत भेदभाव - हम मानें या नहीं परन्तु यह एक कड़वा सच है। छोटे शहरों के संस्थानों से लेकर IIT जैसे बड़े संस्थानों तक में जातिगत भेदभाव और मानसिक प्रताड़ना की खबरें सामने आती रही हैं| वहीँ यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के बारे में बहुत कम चर्चा होती है जबकि युवाओं व किशोरों में बढ़ती मानसिक समस्या का यह एक बहुत बड़ा कारण है।
अब बात यह आती है कि वजह कोई भी हो वह इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि युवा, जिसके आगे उसका पूरा जीवन पड़ा हुआ है वह अचानक ही उसे यूँ ही समाप्त कर ले। यहाँ पर उसे एक ऐसे माहौल की जरूरत होती है जिसमें वह अपनी समस्याएँ खुलकर कह सके जिसका समय रहते निदान हो सके। जैसे–
1. उसे बताना चाहिये कि एक परीक्षा, एक डिग्री, एक नौकरी या एक विफल प्रेम संबंध मात्र ही उसके जीवन का निर्णय नहीं कर सकती। मानव जीवन को इनसे परे भी समझा जाना चाहिये।
2. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े रोग का इलाज सम्भव है लेकिन मनोरोगों को छिपाने के कारण इन समस्याओं के 80% रोगी इलाज से वंचित है।
4. भारत में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 में आत्महत्या सम्बन्धी प्रावधान में संशोधन करना और विकलांगता अधिनियम 2016 में मानसिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल करना| इसके अलावा 2022 में टेली-मानस हेल्पलाइन (14416) शुरू की गयी थी, साथ में बजट 2022-23 में राष्ट्रीय टेली-मेंटल सेंटर बनाने का भी प्रावधान है।
5. भारत में मानसिक समस्याओं के निराकरण हेतु प्रत्येक 1 लाख की आबादी पर मात्र 0.75 मनोचिकित्सक है जबकि इन्हें न्यूनतम 3 होना चाहिये। इस दिशा में ध्यान देना चाहिये।
लेखक: रवि कुमार माँझी
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